Ek delivery boy ki kahani

परिचय

जब हम घर बैठे एक बट्टन दबाकर गरम-गरम खाना मंगवाते  है,तब कोई एक इंसान-अपनी बाइक लेकर,धूप ,बारिश और ट्राफिक  को तोड़ता हुआ-सिर्फ टारगेट के लिए दौड़ रहा होता है!

ये कहानी है एक swiggy डेलीवेरी बॉय की-जिसकी  मेहनत सिर्फ order पूरा करना नहीं, बल्कि एक बेहतर ज़िंदगी की तालाश भी है!

ये कहानी किसी और की नहीं बल्कि एक मजबूर लड़का, जो अपने हालातों के आगे मजबूर है,उसका नाम है रवि जिसकी उम्र 24 साल जो लखनऊ के outer एरिया  से आता है जो पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करता है! और उसका बस एक ही सपना है की वो एक छोटा-सा रेस्टोरेंट खोले बस इसी सपने को पूरा करने के लिए वो swiggy मे काम  करता है!

और उसके पिता जी एक फैक्ट्री मे काम करते थे, लेकिन हेल्थ खराब होने कारण उनका काम छूट गया था! जब उसके पिताजी बीमार रहने लगे तो इलाज और दवाईयों के पैसे के लिए और घर का सारा भार उसके ऊपर आ गया! 

एक दिन का सफर 

 सुबह के 9 बजे रवि अपनी पुरानी सी बाइक से काम पर जाता है, पेट मे सिर्फ एक कप चाय होती है, और हाथ मई swiggy का ऑरेंगे बैग! उसके फोन पर notification आता है (New order accepted ).

गर्मी हो या सर्दी ,बारिश हो या आँधी-उसके दिन की सुरुआत हमेशा इसी आवाज से होती है। 

सुबह की सुरुआत

जब दुनिया ऑफिस के लिए निकलती है ,रवि गली-गली घूम कर खाने के ऑर्डर पिक करता है। ट्राफिक मे फसना ,सिग्नल पर रुकना और कभी-कभी कस्टमर के गुस्से का सामना करना । ये सब उसके दिनचर्या का हिस्सा हो गया!

दोपहर की मुश्किलें 

दोपहर के एक बजे तक 6-7 ऑर्डर हो जाते है, हेलमेट पहेनना पीठ पर भारी बैग और पेट मई भूख-फिर भी वो हस्ते हुए बोलता है (Sir,Enjoy you meal  )

कभी- कभी उसके साथ funny momment भी हो जाते है-जैसे कोई बच्चा दरवाजा खोलता और डेलीवेरी बैग को देखकर खुश हो जाता है!

शाम के वक्त 

शाम के सात बजे ऑर्डर का सिलसिला और तेज हो जाता है, तो रवि सोचता है की आज अच्छा काम होगा तो पापा की दवाई का खर्च निकल जाएगा!लेकिन बाइक चलाते-चलाते उसके पैर मे सूजन आ जाती है, और पैर दुखने भी लगते है, लेकिन फिर भी वो अपने सपने और अपने घर की जिम्मेदारी को नहीं भूलता है । उसके जहन मे एक ही बात होती है की "आज जितना ज्यादा काम करूंगा, उतना ज्यादा पैसे बचेगें"। 

रात का सफर 

रात के 11 बजे जब लोग अपना डिनर इन्जॉय कर रहे होते है, रवि  अभी भी रोड पर होता है। कभी  ट्रैफिक कम मिलता है कभी कभी तो घर जाने के टाइम पर ऑर्डर आ जाता है, लेकिन रवि थकान के बावजूद भी उसके चेहरे पर एक सुकून होता है क्युकी हर दिन उसे उसके सपने के थोड़ा और करीब ले जाता है। 

सपने और सोच दिन के एंड मे जब रवि अपने घर वापस आता है अपने पापा को कहना खिलाता है और माँ के पैर दबाकर खुद एक थोड़ी सी रोटी खाता है उसके दिल मे बस एक ही अरमान है,"एक दिन में अपना restaurent खोलूँगा, जहां लोग खाना ही नहीं, मोहब्बत भी test करेंगे "।  

(👍Aisi hi real struggles aur inspiring kahaniyan padhne ke liye blog ko follow karein.aapka ek share kisi aur ko inspire kar sakta hai." THANK YOU

1 टिप्पणियाँ

  1. Mujhe ye story bahut pasand aayi hai mujhe ye story se motivation bhi mula hai mai chata hun aur bhi story aap post karo love this post thanks 🙏🙏🙏

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